भोर प्रभात की बेला में
प्रकृति लगती निराली है
ओस की नम बूँदो में
पहली किरण की लाली है
नई कोपलों और पत्तों पर यूं फिसलती है
जैसे झूलने की अब इनकी बारी है।
प्रकृति लगती निराली है
ओस की नम बूँदो में
पहली किरण की लाली है
नई कोपलों और पत्तों पर यूं फिसलती है
जैसे झूलने की अब इनकी बारी है।
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